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अजब अफसाना है तेरा भी ए ज़िन्दगी , की जब बचपन था तब मासूमियत थी, लड़कपन में आये तो  मौज मस्ती थी, पर जब जवानी आयी तो न जाने कहा से ये ऊँच नीच,  अपना पराया और पैसो का घमंड भी साथ ले  आयी|  समझ नहीं आता कि  हम वही है जो बचपन में खेलते वक़्त,  बॉल लाने नाली में बिना हिचकिचाए यूँही कूद जाया करते थे बेबाक बेपरवाह,  तब न ऊँच नीच का ज्ञान था न हिन्दू मुसलमान का,  न किया अमीर गरीब में भेद तब तो बस आपस में याराना था,  सबके बीच कुछ ऐसा ही याराना था|   कितना अजब अफसाना है तेरा भी ए ज़िन्दगी,  कि कौन है वो चार लोग जिनके बारे में सोच के न जाने कितनी ज़िंदगियाँ उन्ही बरबाद हो जाती है,  अगर वो चार लोग इतने ही मायने रखते है तो कहा थे वो चार लोग जब दामिनी के दामन से खिलवाड़ हुआ?  और कहा थे वो चार लोग जब एक माँ ने अपने बच्चे को चाँद पैसों के आभाव में अपनी ही गोद में दम तोड़ते   देखा था?  आज छोर दीजिये सब जी हाँ सब रुतबा, पैसों का घमंड, ऊँच नीच का भेद,  बस लौट जाइये फिरसे उसी बचपन में और खोज लीजिये अपने अंदर के उस छोटे से बच्चे को,  जो था इन सब चीज़ो से परे,  अजब अफसाना

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