70 साल की आज़ादी
ये कविता मैंने 2017 में लिखी थी जब हमारा देश ने अपनी आज़ादी के 70 साल पुरे किये थे. उम्मीद है आपको ये कविता पसंद आएँगी.
70 साल इस आज़ादी के कुछ फीके फीके से लगते है,
इस दुनियाँ की नज़रो मे हम जीते हुए से लगते है,
पर इनको भी ये क्या मालुम की हम अपनो से ही हारे है।
वो कहते हम आज़ाद यहाँ ,
मैं कहता हूँ वो आज़ादी वाली बात कहाँ?
यहाँ बचपन सोता भूखा है,
बुढ़ापा अकेले ही रोता यहाँ,
बात न करना महिलाओं की,
उन पर होता अत्याचार यहाँ।
वो हर पांच साल में आते है,
हमको सपने दिखलाते है,
पर जब हम खोजे उन सपनों को,
नाही वो सपने, ना उनको दिखाने वाले हमें नज़र आते है।
अब वो गांधी वाली बात कहाँ ?
अब तो भाई भाई से लड़ता है।
भ्रष्टाचार अत्याचार भुखमरी और लाचारी,
सब आपस में ही मिलते यहाँ,
पर मुझको कोई तो बतला दो,
वो आज़ादी वाली बात कहाँ?
70 साल इस आज़ादी के कुछ फीके फीके से लगते है।
- तन्मय प्रकाश जौहरी
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